Saturday, October 10, 2009
सच का कारोबार मैंने नाम क्यो दिया है, इसका अंदाजा आपको भी लग गया होगा। पत्रकारिता में आया था, तब ये नही पता था की सच का कारोबार भी होता होगा। हमने तो यही सोचा था की लोग सच छुपाते है। जो सच छुपाते है वे समाज में अच्छे लोग नही होते है। जो सच को सामने लाते है, समाज में उसे इज्जत और मन मिलता है। आप समझ सकते है, मेरी सोच किताबो की आदर्श पंकितियो से बनी हुई है... किताब की बातें और जिन्दगी की पाठ में फर्क होता है। बहुत से लोग ये बात जानते है लेकिन कैसे कह पाए ये समस्या होती है। खैर, आज लगता है किमीडिया और लोग इतने जागरूक हो गए है कि अन्याय और शोषण कि जगह नही बची है। पर आज भी वैसी ही स्थिति है। शहर में रहकर और अधिकारी, जन प्रतिनिधि के साथ बैठकर इस बात का अहसास ही नही होता है कि शोषण और बेबसी किस कदर गहरी है। ऐसी ही कुछ घटनाओ को बताना चाहता हूँ । कोशिश होगी की इन दबी बातो पर कुछ चर्चा हो। उसके कुछ मायने निकले॥
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