Sunday, October 17, 2010
आज अच्छा लगा.. दशहरा का पर्व है. जगह जगह रावन मारा गया. लोग खुश थे. दिन में माँ दुर्गा का विसर्जन हो रहा था. शाम में पतित रावन को मारा गया. मारने वाला खुश था. बेजान को मरते देखने वाले भी बहुत खुश थे. सभी खुश थे. पर शायद नहीं. सब खुश दिख जरुर रहे थे पर थे यह मै नहीं मानता. मै खुद भी खुश कहा था. लाखो की भीड़ लगी थी wrs मैदान पर. ये आंकड़ा मुख्यमंत्री जी का है. उन्होंने कहा था.. आयोजन समिति ये अनुमान नहीं लगा पा रही है की कितने लोग आये है. शायद २ लाख से भी ऊपर होंगे.खैर.. सभी आये थे बस एक चीज देखने. कैसी आतिशबाजी होती है. रावन इस बार कैसे अलग अंदाज में मरेगा. सभी की दिलचस्पी उस अनोखी आतिशबाजी में थी की कसे मैदान पर सूरज निकलता है और कैसे ग्लोबल वार्मिग का सन्देश लोगो को मिलेगा. ये सब पहले से तय था. आयोजन समिति जिसके मुखिया प्रदेश के नागरिये मंत्री थे, ने प्रेस कांफ्रेंस लेकर बताया था.. इस बार की आतिशबाजी भव्य होगी.. शानदार होगी.. जैसा ओलंपिक में होती है.. कॉमन वेल्थ में हुई वैसी होगी.. यह भी की इस बार दो टीम बुलाई गयी है.. एक मुंबई से महमूद भाई.. और दूसरी आन्ध्र प्रदेश से. यह टीम जमीनी आतिशबाजी दिखाएगी.. जैसे ही आतिशबाजी शुरू होगी. मैदान पर सूरज उगने सा आभाष होगा .. फिर दोपहर की दमक होगी.. फिर शाम का नजारा होगा.. अखबारों में लोग पढ़े . सबने मान लिया ऐसा होगा. तो बेहतर मनोरंज की चाह में खिनचे चले आये. पर देखकर पता चला ऐसा कुछ नहीं हुआ.. पहले जैसी ही आतिशबाजी थी.. कुछ खास नया नहीं था.. जो देखा वह पिछले साल भी हुआ था.. लंका जरुर बना था.. पर वह भी ऐसे जला जैसे गरीब का चूल्हा. कभी तेज, कभी मधिम. यह अलग बात है की भाई लोगो ने २५० गैस सिलेंडर इसी टाट की लंका जलने के लिए इंतजाम किया था.. २५० गरीब का किचन इतने में महीने भर जरुर जलता. पर मै भी क्या ओछी बात कर बैठता हूँ. लाखो लोगो के दिल पर छाई मायूसी छट गयी उसे नहीं देखता हू. ! अरे क्या हुआ, जो रसोई गैस यु जल गयी . रोज ही तो होटल, रेस्टोरेंट, और शाही.. मेरा मतलब है ऊँचे लोगो के कार्यकर्म में गरीबो की गैस जलती है.. ये तो फिर भी उन्ही को खुशी देने की लिए जलाई गयी थी.. सो इसमें नुक्स निकलना गरीब विरोधी ही कहा जायेगा.. खैर.. ! तो सबने देखा.. लाखो का रावन दहन आयोजन. सभी खुश. प्रदेश की पूरी सरकार मंच पर थी. आयोजन का जिम्मा तो एक मंत्री जी ही उठा रखे थे. एक राशन भंडार वाले और साउंड सर्विस वाले ने भी अमूल्य योगदान दिया था.. सो मंच पर उन्हें भी जगह मिली थी. अच्छा लगा. सर्वहारा समाजवाद शायद इसे ही कहते होंगे! आयोजन करने वाले की एक ही ख्वाहिश थी..बस मुख्य मंत्री जी को पसंद आ जाये. और स्वागत करने में उन्हें जरुर जगह मिल जाये..मिला भी.. सरकार खुश,,, इतने लोग. मंच के आगे जन सैलाब देखना तो नेताओ का चिर संचित अभिलाषा होती है.. फिर तो जो मांगो, मिलेगा. मुखिया खुश तो आयोजन करता भी खुश... जनता बेचैन थी.. कहा आतिशबाजी देखने आये थे.. क्या क्या देख रहे है.. २ घंटे से भक्ति गीत सुने जा रहे है.. ये सब तो टीवी , मोबाइल पर भी है.. मंत्री, जी आये तो वो भी भाषण देने लगे.. खैर आतिशबाजी हुई.. सबने तली बजाई. अच्छा लगा. पर कुछ अनोखा तो नहीं लगा. कहा है वो मैदान पर सूरज निकलने वाला दृश्य.. किसी ने पूछा तो एक ने मजाक में चुप करा दिया.. चुप, मुफ्त के माल में पसंद नहीं देखते. जो दिख रहा है.. वो देख.. --------- क्रमश
Sunday, October 11, 2009
Saturday, October 10, 2009
सच का कारोबार मैंने नाम क्यो दिया है, इसका अंदाजा आपको भी लग गया होगा। पत्रकारिता में आया था, तब ये नही पता था की सच का कारोबार भी होता होगा। हमने तो यही सोचा था की लोग सच छुपाते है। जो सच छुपाते है वे समाज में अच्छे लोग नही होते है। जो सच को सामने लाते है, समाज में उसे इज्जत और मन मिलता है। आप समझ सकते है, मेरी सोच किताबो की आदर्श पंकितियो से बनी हुई है... किताब की बातें और जिन्दगी की पाठ में फर्क होता है। बहुत से लोग ये बात जानते है लेकिन कैसे कह पाए ये समस्या होती है। खैर, आज लगता है किमीडिया और लोग इतने जागरूक हो गए है कि अन्याय और शोषण कि जगह नही बची है। पर आज भी वैसी ही स्थिति है। शहर में रहकर और अधिकारी, जन प्रतिनिधि के साथ बैठकर इस बात का अहसास ही नही होता है कि शोषण और बेबसी किस कदर गहरी है। ऐसी ही कुछ घटनाओ को बताना चाहता हूँ । कोशिश होगी की इन दबी बातो पर कुछ चर्चा हो। उसके कुछ मायने निकले॥
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